हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: वापस-1

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

वापस-1

वापस-1 - (कवि - अरुण कमल)

जैसे रो-धो कर चुप हो हाथ-मुँह धो
अंतिम हिचकी भर
वापस चूल्हे के पास लौटती है नई वधू
भाई के जाने के बाद

वैसे ही लौटो तुम भी
बहुत हुआ बहुत रोए-गाए
अब साँझ हो रही है
बत्ती जलाओ और शुरू करो फिर वही पाठ
वहीं जहाँ छोड़ा था कल।



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