हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति - (कवि - घनानंद)

सवैया

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।
साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।
जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।। 6 ।।



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