हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: उधर के चोर

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

उधर के चोर

उधर के चोर - (कवि - अरुण कमल)

उधर के चोर भी अजीब हैं
लूट और डकैती के अजीबो-गरीब किस्से-

कहते हैं ट्रेन-डकैती सात बजते-बजते सम्पन्न हो जाती है
क्योंकि डकैतों को जल्दी सोने की आदत है
और चूँकि सारे मुसाफ़िर बिना टिकट
ग़रीब-गुरबा मज़दूर जैसे लोग ही होते हैं
इसलिए डकैत किसी से झोला किसी से अंगोछा चुनौटी
खैनी की डिबिया छीनते-झपटते
चलती गाड़ी से कूद रहड़ के खेत में ग़ुम हो जाते हैं;

और लूट की जो घटना अभी प्रकाश में आई है
उसमें बलधामी लुटेरों के एक दल ने दिनदहाड़े
एक कट्टे खेत में लगा चने का साग खोंट डाला
और लौटती में चूड़ीहार की चूड़ियाँ लूट लीं;

लेकिन इससे भी हैरतअंगेज़ है चोरी की एक घटना
जो सम्पूर्ण क्षेत्र में आज भी चर्चा का विषय है-
कहते हैं एक चोर सेंध मार घर में घुसा
इधर-उधर टो-टा किया और जब कुछ न मिला
तब चुहानी में रक्खा बासी भात और साग खा
थाल वहीं छोड़ भाग गया-
वो तो पकड़ा ही जाता यदि दबा न ली होती डकार



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