हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है

कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुटने लगता है - (कवि - फ़िराक़ गोरखपुरी)

कभी पाबन्दियों से छुट के भी दम घुटने लगता है
दरो-दीवार हो जिनमें वही ज़िन्दाँ नहीं होता

हमारा ये तजुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसाँ नहीं होता

बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिये हर दर्द ऐ नादाँ ! नहीं होता

यकीं लायें तो क्या लायें, जो शक लायें तो क्या लायें
कि बातों से तेरी सच झूठ का इम्काँ नहीं होता



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