हिन्दी की कविता, लघुगीत, बालगीत, फिल्म गीत, गजल, शायरी, धार्मिक लोकगीत का विशाल संकलन
राख
काली है
जलावन से बची है
बुझ चुकी है,
किन्तु चिंगारी बचाकर
रख सकेगी
ढाँप ले तो ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें