हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: आगम

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

आगम

आगम - (कवि - अरुण कमल)

केश तो बहुत पहले पक गए थे
जिन्हें तभी देखता जब आईना हो सामने
और आँखों पर कत्थई घेरे
जो ऎसे नज़र नहीं आते
आवाज़ में भी शायद पानी आ गयाथा
और छाती भी ढलने लगी थी कुछ
पर आज तो हथेली के ऊपर साफ़ दिखी
ढीली हुई चमड़ी भुरभुरी

तो क्या शुरू है अंत?
पास है समय?



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