एक औरत पूरे शरीर से रो रही थी
एक पछाड़ थी वह
हाहाकार
उससे बड़ी एक औरत उसे छाती से
बांधे हुई थी पत्थर बनी
और एक रिक्शा खींच रहा था लगातार
चुप एकटक पैडल मारता
हर घर हर दुकान को उकटेरता
पूरे शहर में घूम रहा था हाहाकार।
सभी रचनायें देखने के लिये क्लिक करें
http://www.hindisahitya.org
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें