सौंधे की बास उसासहिं रोकत, चंदन दाहक गाहक जी कौ ।
नैनन बैरी सो है री गुलाल, अधीर उड़ावत धीरज ही कौ ॥
राग-विराग, धमार त्यों धार-सी लौट परयौ ढँग यों सब ही कौ ।
रंग रचावन जान बिना, 'घनआनँद' लागत फागुन फीकौ ॥
सभी रचनायें देखने के लिये क्लिक करें
http://www.hindisahitya.org
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें