हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: मैं होशे-अनादिल हूँ मुश्किल है सँभल जाना

बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

मैं होशे-अनादिल हूँ मुश्किल है सँभल जाना

मैं होशे-अनादिल हूँ मुश्किल है सँभल जाना - (कवि - फ़िराक़ गोरखपुरी)

मैं होशे-अनादिल1 हूँ मुश्किल है सँभल जाना
ऐ बादे-सबा मेरी करवट तो बदल जाना

तक़दीरे-महब्बत हूँ मुश्किल है बदल जाना
सौ बार सँभल कर भी मालूम सँभल जाना

उस आँख की मस्ती हूँ ऐ बादाकशो2 जिसका
उठ कर सरे-मैख़ाना मुमकिन है बदल जाना

अय्यामे-बहारां में दीवानों के तेवर भी
जिस सम्त नज़र उट्ठी आलम का बदल जाना

घनघोर घटाओं में सरशार फ़ज़ाओं में
मख्म़ूर हवाओं में मुश्किल है सँभल जाना

हूँ लग़्जिशे मस्ताना3 मैख़ान-ए-आलम में
बर्के़-निगहे-साक़ी कुछ बच के निकल जाना

इस गुलशने-हस्ती में कम खिलते हैं गुल ऐसे
दुनिया महक उट्ठेगी तुम दिल को मसल जाना

मैं साज़े-हक़ीक़त हूँ सोया हुआ नग़्मा था
था राज़े-निहां कोई परदों से निकल जाना

हूँ नकहते-मस्ताना4 गुलज़ारे महब्बत में
मदहोशी-ए-आलम है पहलू का बदल जाना

मस्ती में लगावट से उस आंख का ये कहना
मैख्‍़वार की नीयत हूँ मुमकिन है बदल जाना

जो तर्ज़े-गज़लगोई मोमिन ने तरह की थी
सद-हैफ़ फ़ि‍राक़ उसका सद-हैफ़ बदल जाना

1- बुलबुल के स्वभाव का। 2. शराब पीनेवाली। 3. मस्ताने की लड़खड़ाहट। 4. मस्ती -भरी महक।



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