हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: आदमी को खुशी से

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

आदमी को खुशी से

आदमी को खुशी से - (कवि - कमलेश भट्ट 'कमल')

आदमी को खुशी से ज़ुदा देखना
ठीक होता नहीं है बुरा देखना।

पुण्य के लाभ जैसा हमेशा लगे
एक बच्चे को हँसता हुआ देखना।

रोशनी है तो है ज़िन्दगी ये जहाँ
कौन चाहेगा सूरज बुझा देखना।

सर-बुलन्दी की वो कद्र कैसे करे
जिसको भाता हो सर को झुका देखना।

ज़िन्दगी खुशनुमा हो‚ नहीं हो‚ मगर
ख़्वाब जब देखना‚ खुशनुमा देखना।

सारी दुनिया नहीं काम आएगी जब
काम आएगा तब भी खुदा‚ देखना।



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