जो तीर जा चुका है वो कहता है कान में - (कवि - महेश चन्द्र गुप्त 'ख़लिश')
३७७६. जो तीर जा चुका है वो कहता है कान में
जो तीर जा चुका है वो कहता है कान में
है दिल तेरा अटका भला क्योंकर कमान में
वो जा बसा है अब फ़लक के पार और तू
खोया हुआ है अब तलक उसके गुमान में
जो कह चुका है अलविदा न लौट पाएगा
है कुछ नहीं वज़ूद अब उसके निशान में
आती है मेरे नाम की जब दूर से सदा
लगता है अभी है मेरा कोई जहान में
क्या वक़्त आ गया है सरे-आम अब ख़लिश
ईमान बिक रहा है मज़हब की दुकान में.
महेश चन्द्र गुप्त 'ख़लिश'
२० फ़रवरी २०१२
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३७७६. जो तीर जा चुका है वो कहता है कान में
जो तीर जा चुका है वो कहता है कान में
है दिल तेरा अटका भला क्योंकर कमान में
वो जा बसा है अब फ़लक के पार और तू
खोया हुआ है अब तलक उसके गुमान में
जो कह चुका है अलविदा न लौट पाएगा
है कुछ नहीं वज़ूद अब उसके निशान में
आती है मेरे नाम की जब दूर से सदा
लगता है अभी है मेरा कोई जहान में
क्या वक़्त आ गया है सरे-आम अब ख़लिश
ईमान बिक रहा है मज़हब की दुकान में.
महेश चन्द्र गुप्त 'ख़लिश'
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