हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: अब-उम्र

शनिवार, 10 मार्च 2012

अब-उम्र

अब-उम्र - (कवि - निवेदिता)

अब जो आई है वो
साथ लाई है हर मौसम का रंग
ये मौसम है नर्म पत्तों का
ये मौसम है सुर्ख़ गुलाबों का
खिले हैं प्यार के हज़ार रंग
यह इक रंग ऐसा है जो हर रंग पर पड़े है भारी
देखो उम्र के चेहरे पर फैली है लाली



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