हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: बच्चे तुम अपने घर जाओ

सोमवार, 12 मार्च 2012

बच्चे तुम अपने घर जाओ

बच्चे तुम अपने घर जाओ - (कवि - गगन गिल)

बच्चे तुम अपने घर जाओ
घर कहीं नहीं है
तो वापस कोख में जाओ,
माँ कहीं नहीं है
पिता के वीर्य में जाओ,
पिता कहीं नहीं है
तो माँ के गर्भ में जाओ,
गर्भ का अण्डा बंजर
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहावारी में
जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे तुम अपने घर जाओ


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