हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: गैंग

मंगलवार, 13 मार्च 2012

गैंग

गैंग - (कवि - गीत चतुर्वेदी)

अलग-अलग जगहों से आए कुछ लोगों का एक गैंग है इसमें पान टपरी पर खड़े शोहदे हैं, मंदिरों-मस्जिदों पर पेट पालते कुछ धर्मगुरु हैं, कुछ लेखक हैं, थोड़े अजीब-से लगने वाले रंगों का प्रयोग करने वाले कुछ चित्रकार और हर ख़बर पर दाँत चियार देने वाले कुछ पत्रकार नाक पर चश्मा चढ़ाए बैठे मैनेजर हैं जो हर बात में ढूंढ ही लेते हैं बाज़ार कुछ बहुत रचनात्मक क़िस्म के लोग हैं जो बताते हैं ठंडे की बोतल का एक घूँट सारे रिश्ते-नातों से ऊपर है कुछ बड़े ही दीन-हीन क़िस्म के हैं चौबीस घंटे जिनकी चिंता का मरकज़ अरोड़ा साहब की सेलरी है कुछ लोग सातों दिन बड़े प्रसन्न रहते हैं और समझ में नहीं आता कि दुनिया में दुख क्यों है और कुछ की ख़ुशी केवल वीकेंड में आती है चिकने गालों और मजबूत भुजाओं वाले कुछ नट हैं एक ख़ास ढब वाली स्त्रियाँ हैं जिनके घरों में रोते हुए शिशु नहीं होते जो टारगेट पर दागी गई मिसाइल की तरह सीधे आ गिरते हैं कइयों के पास दुनिया को व्यवस्थित करने के हज़ारों फंडे हैं कुछ लोगों के होठों पर शिवानंद स्वामी के काव्य बराबर रहते हैं और कुछ लोगों के गले में कुमार शानू के गीत  यह गैंग अपने समय की बड़ी प्रतिभाओं का प्लेटफॉर्म नंबर वन है यह गैंग किसी भी हँसते-खेलते देश के सीने पर सवार हो जाता है और किसी भी अंगड़ाती नदी पर डंडा मार उसे छितरा सकता है यह गैंग मुझे जितनी बार बुलाता है मेरा दिल धक् से रह जाता है



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