हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: आलाप में गिरह

मंगलवार, 13 मार्च 2012

आलाप में गिरह

आलाप में गिरह - (कवि - गीत चतुर्वेदी)

जाने कितनी बार टूटी लय

जाने कितनी बार जोड़े सुर

हर आलाप में गिरह पड़ी है
कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं

और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़े

मुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे दया आ गई

और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया

थोड़ी-सी हँसी चुराई

सबने कहा छोड़ो भी
और हमने छोड़ दिया



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