हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: रिश्ते-2

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

रिश्ते-2

रिश्ते-2 - (कवि - कविता वाचक्नवी)

रंगी परातों से चिह्नित कर

चलते पायल-से रिश्ते

हँसी -ठिठोली की अनुगूँजें

भरते, कलकल-से रिश्ते
पसली के अंतिम कोने तक

कभी कहकहे भर देते

दिन-रातों की आँख-मिचौनी

हैं ये चंचल-से रिश्ते
उमस घुटन की वेला आती

धरती जब अकुलाती है

घन-अंजन आँखों से चुपचुप

बरसें बादल -से रिश्ते
पलकों में भर देने वाली

उंगली पर रह जाते हैं

बैठ अलक काली नजरों का

जल हैं, काजल -से रिश्ते
कभी तोड़ देते अपनापन

कभी लिपट कर रोते हैं

कभी पकड़ से दूर सरकते

जाते, पागल -से रिश्ते



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