हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: क़ायनात

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

क़ायनात

क़ायनात - (कवि - अरुण कुमार नागपाल)

मेरे भीतर हैं कई द्वीप
कई गुफ़ाएँ हैं अजंता-एलोरा-सी
कई पक्षी हैं जो चहचहा रहे हैं
ख़ूँख़ार जानवर भी हैं

कई हिमखण्ड हैं
कई सागर,कई दरिया,सदानीरा नदियाँ हैं
बहुत-से नदी-नाले भी
एक पोखर भी है छोटा-सा
पहाड़-पर्वत भी हैं
कई जंगल भी हैं घने अँधेरे
जिनमें मैं अक्सर भटक जाया करता हूँ

खण्ड-ब्रह्माण्ड हैं
आसमान हैं,तारे हैं
अनगिनत पृथ्वियाँ,असंख्य चाँद, कई सूरज भी हैं
पूरी क़ायनात है मेरे भीतर



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