तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ - (कवि - जगन्नाथ आज़ाद)
तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ|
चमन में यादे-अय्याम-ए-बहाराँ लेके आया हूँ|
तेरी महफ़िल से जो अरमान-ओ-हसरत लेके निकला था,
वो हसरत लेके आया हूँ वो अरमाँ लेके आया हूँ|
तुम्हारे वास्ते ऐ दोस्तो मैं और क्या लाता,
वतन की सुबह और शाम-ए-ग़रीबाँ लेके आया हूँ|
मैं अपने घर में आया हूँ मगर अन्दाज़ तो देखो,
के अपने आप को मानिन्द-ए-महमाँ लेके आया हूँ|
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तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ|
चमन में यादे-अय्याम-ए-बहाराँ लेके आया हूँ|
तेरी महफ़िल से जो अरमान-ओ-हसरत लेके निकला था,
वो हसरत लेके आया हूँ वो अरमाँ लेके आया हूँ|
तुम्हारे वास्ते ऐ दोस्तो मैं और क्या लाता,
वतन की सुबह और शाम-ए-ग़रीबाँ लेके आया हूँ|
मैं अपने घर में आया हूँ मगर अन्दाज़ तो देखो,
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