हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: पास रक्खेगी नहीं

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

पास रक्खेगी नहीं

पास रक्खेगी नहीं - (कवि - कमलेश भट्ट 'कमल')

पास रक्खेगी नहीं सब कुछ लुटायेगी नदी
शंख शीपी रेत पानी जो भी लाएगी नदी

आज है कल को कहीं यदि सूख जाएगी नदी
होठ छूने को किसी का छटपटाएगी नदी

बैठना फुरसत से दो पल पास जाकर तुम कभी
देखना अपनी कहानी खुद सुनाएगी नदी

साथ है कुछ दूर तक ही फिर सभी को छोड़कर
खुद समन्दर में किसी दिन डूब जाएगी नदी

हमने वर्षों विष पिलाकर आजमाया है जिसे
अब हमें भी विष पिलाकर आजमाएगी नदी


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