हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: नाअते पाक

रविवार, 4 मार्च 2012

नाअते पाक

नाअते पाक

दुनिया की अंगूठी के नगीने मेँ डाल दे
मुझको बना के ख़ाक मदीने मे डाल दे
मुश्क़ो गुलाब की तो मुझे आरज़ू नहीँ
उनका पसीना मेरे दफ़ीने मे डाल दे
तूफाँ हि तेरी क़श्ती किनारे पे लायेगा
लिख कर नबी का नाम सफ़ीने मे डाल दे
उस पर चलूँ जो तेरे नबी का हे रास्ता
ऐसा सलीक़ा तू मेरे जीने मे डाल दे
‘हसरत’ हे मेरी नाते नबी कहता मैँ रहूँ
ऐसा कमाल तू मेरे सीने मे डाल दे


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