हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?

शुक्रवार, 9 मार्च 2012

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है? - (कवि - जया झा)

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?

कोई वज़ह नहीं कि जी न सकें,

हाथ में रखा जाम पी न सकें।

मजबूत हाथों के होते भी,

फिसलन की वजह से

कभी प्याले को हाथ से गिरते देखा है?

कभी ज़िन्दग़ी को हाथ से फिसलते देखा है?



सभी रचनायें देखने के लिये क्लिक करें
http://www.hindisahitya.org

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें