हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: एक खिड़की खुली है अभी

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

एक खिड़की खुली है अभी

एक खिड़की खुली है अभी - (कवि - नरेन्द्र मोहन)

एक ही राह पर चलते चले जाने और
हर आंधी से ख़ुद्को बचाते रहनेकी आदत ने
आख़िर मुझे पटखी दिया
उस अजीबो-गरीब हवेली में
बंद होते गएजिसके
बाहरी-भीतरी दरवाज़े एक-एक कर
मेरे पीछे

घुप्प अंधेरे में
देखता हूँ
सीढ़ीनुमा एक खिड़की
खुलती हुई
आसमान की तरफ
जीना सिखाती
आती है यहीं से
कभी चमचमाती धूप, रिमझिमाते बादल,
कभी ओलों की बौछार
झपट्टा मारती चमकती आँखों वाली बिल्ली…

पहले की तरह
इस बार मैं डरा हुआ नहीं हूँ
खुली खिड़की–
हँसती है
रोती है/ सुबकती है/ थिरकती है/ ढहती है

अंधेरी हवेली में
एक खिड़की खुली है अभी ।



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