हिन्दी साहित्य काव्य संकलन: जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा

जहाँ में 'हाली' किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा - (कवि - अल्ताफ़ हुसैन हाली)

जहाँ में 'हाली' किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजिएगा
ये भेद है अपनी ज़िन्दगी का बस इसकी चर्चा न कीजिएगा
इसी में है ख़ैर हज़रते-दिल! कि यार भूला हुआ है हमको
करे वो याद इसकी भूल कर भी कभी तमन्ना न कीजिएगा
कहे अगर कोई तुझसे वाइज़! कि कहते कुछ और करते हो कुछ
ज़माने की ख़ू है नुक़्ताचीनी, कुछ इसकी परवा न कीजिएगा


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